करोना काल में केएमसी यूनीवर्सिटी का तुगलकी फरमान

कोविड 19 के तनाावपूर्ण समय में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (केएमसी यूनीवर्सिटी) ने एक नया तुगलकी फरमान जारी कर दिया है। विवि ने शोधार्थियों को 6 दिन में फीस जमा करने का आदेश जारी कर दिया है। साथ ही साथ पिछले वर्ष की तुलना में 45 फीसदी फीस बढ़ोत्तरी भी कर दी है। एक ओर जहां हर कोई आर्थिक संकट से गुजर रहा है, ऐसा में विवि प्रशासन का इस कदम से शोधार्थियों में भारी रोष है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में वर्ष 2019 में पी.एचडी के पहले बैच का प्रवेश हुआ है। उस समय विद्यार्थियों से एडमिशन फीस के तौर पर 14,160 रूपये लिए गए। 23 जुलाई, 2020 को जारी आदेश में इस बार फीस की राशि बढ़ाकर 19,910 रूपये कर दी है। विवि प्रशासन का कहना है कि बढ़ी हुई छह हजार फीस कोर्स वर्क से संबंधित है। विवि ने ऐसे समय में बढ़ी हुई फीस जमा करने का आदेश दिया, जब कोविड 19 के कारण सरकार से लेकर न्यायालय तक ने इस सत्र में फीस न बढ़ाने का आदेशात्मक सुझाव दिया है। सबसे अधिक हैरानी की बात यह है कि विवि ने प्रशासन ने इस रकम को जमा करने के लिए छह दिन का समय दिया है।
एक शोध छात्र के मुताबिक यूनीवर्सिटी का यह फैसला सरासर गलत है। प्रवेश के समय से ही कोई आॅडिनेंस जारी नहीं किया है। हमें यह पता ही नहीं है कि हमसे किस मद में कितना शुल्क लिया जा रहा। शोधार्थियों का कहना है कि अगर विवि कोर्स वर्क की फीस के नाम पर छह हजार ले रहा है तो उसमें 14 हजार रूपये क्यों जोड़ रहा है, जबकि इसका शुल्क तो गत वर्ष ही लिया जा चुका है। क्या विवि हर वर्ष अपने शोधार्थियों से प्रवेश शुल्क लेना चाह रहा है?
विद्यार्थियों का कहना है कि सुविधाओं के नाम पर विवि ने सिर्फ वादे ही किए हैं। प्रवेश के समय कहा गया था कि नाॅन जेआरएफ स्टूडेंट्स को भी अलग से स्काॅलरशिप प्रदान की जाएगी। पी.एचडी स्टूडेंट्स के लिए अलग कम्प्यूटर लैब और लाइब्रेरी की सुविधा होगी, जबकि हकीकत इससे उलट है। स्काॅलरशिप तो दूर शोधार्थियों से बढ़ी फीस ली जा रही है। विवि में किसी भी रिसर्च पब्लिकेशन का एक्सस भी नहीं है। विवि के इस आदेश के कारण शोधार्थियों में भारी रोष है। उनका कहना है कि इस संबंध में वह महामहिम राज्यपाल को अपना ज्ञापन सौपेंगे।