September 6, 2020

सेंट जोसेफ स्कूल्स : संघर्षों से लिखी सफलता की कहानी

LUCKNOW. शिक्षक दिवस, एक ऐसा दिन जब हम उन सभी शिक्षकों को याद करते हैं जिनसे हमने कुछ न कुछ सीखा होता है और जिनके प्रयासों से न सिर्फ हम अपने जीवन में सफल होते हैं बल्कि हमारे व्यक्तिव का भी निर्माण होता है। शिक्षक दिवस की इस परंपरा में कई बार हम उस जगह को ही भूल जाते हैं, जहां पहली बार हम उन पथ-प्रदर्शक से मिलते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन विद्यालयों की जहां न सिर्फ हमें शिक्षक मिलते हैं बल्कि जीवन जीने के सैंकड़ों सबक भी हर रोज हम अपने बस्तों में इकट्ठा करते हैं।

इस शिक्षक दिवस पर हम प्रयास करेंगे उन स्कूलों से आपको रूबरू कराने का, जहां न सिर्फ आपने तालीम हासिल की है बल्कि जीवन का सबसे सुनहरा समय भी वहीं बीता है। साथ ही, हम बताएंगे उन शख्शियतों के बारे में जिन्होंने उस दौर में ‘पब्लिक’ स्कूल की नींव रखी, जब सरकारी तंत्र की सैकड़ों चुनौतियां उनके सामने थीं।

इस श्रृंखला में आज हम बात करेंगे सेंट जोसेफ स्कूल्स की :

श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल, संस्थापिका

सेंट जोसेफ केवल लखनऊ में ही नही बल्कि प्रदेश स्तर पर एक पहचान है उन हजारों शिक्षक और शिक्षिकाओं की जो इस समूह से जुड़े है। सेंट जोसेफ विद्यालय की स्थापना श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल ने अपनी प्यारी पुत्री नीरू की समृति मैं “नीरू मेमोरियल सोसायिटी” के अंतर्गत सन् 1987 में की जो अल्पकाल में एक पौधे से विशाल वटवृक्ष में बदल चुका है। इस उपलब्धि का पूरा श्रेय केवल एक ही व्यक्तित्व श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल सेंट जोसेफ विद्यालय समूह की संस्थापक अध्यक्ष को जाता है।

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सेंट जोसेफ विद्यालय से किसी न किसी रूप में जुड़ा हर व्यक्ति अपने आप पर गर्व का अनुभव करता है कि वह इस विद्यालय परिवार का एक सम्मानित सदस्य है।

संघर्षों से लिखी सफलता की इबारत

बुन्देलखण्ड की पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाली श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल स्त्रियों और ग्रामीण जीवन की दुरूहताओं से भली-भांति परिचित थी। समाज की दुर्दशा के लिये वे जानती थी कि शिक्षा ही ऐसा अस्त्र है जिसकी सहायता से सारी परेशानियां दूर हो सकती है। इसलिये निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के लिये ऐसा विद्यालय खोलना जहां कम से कम फीस में उच्च स्तरीय शिक्षा मिले उनका स्वप्न था। जो उनकी साधना से 1987 में लखनऊ में सेंट जोसेफ के रूप में साकार हुआ।

प्राइमरी स्तर से आरम्भ हुये सेंट जोसेफ की एक-एक ईट में श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल के अथक प्रयास, कड़ी मेहनत और सामाजिक सघर्षो की दास्तां लिखी हुयी है। सामाजिक समस्याओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने दूसरों को सदैव प्रेरणा दी। उस समय विशाल राजाजीपुरम् क्षेत्र में कोई कन्या विद्यालय न होने की संवेदना, छात्राओं को हो रही असुविधा की पीड़ा ने ही उनको सेंट जोसेफ गर्ल्स स्कूल आरम्भ करने की प्रेरणा दी।

तमाम अड़चनों और परेशानियों के बाद एक स्कूल भूखंड प्राप्त हुआ और शिक्षा विभाग से मान्यता मिली। शिक्षा पर सभी का अधिकार को उन्होनें जीवंत किया। उन्होने अपने विद्यालयों में झुग्गी-झोपडि़यों में रहने वाले बच्चों के लिये भी दरवाजे खोल दिये। उन दबे कुचले बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता का इससे बड़ा और कोई उदाहरण संभव नहीं है।

अपने स्त्री जीवन में महिलाओं पर हो रहे घरेलू और सामाजिक अत्याचारों के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने उनको महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने की प्रेरणा दी। उन्होने खुद के प्रयासों से महिला समूहों को स्वेटर बुनाई, सौर चूल्हा और भी अन्य योजनाओं में प्रशिक्षण दिया ताकि वे आर्थिक रूप से खुद सक्षम हो सके।

समाज सेवा को बनाया जीवन का उद्देश्य

अनेक समाजसेवी संस्थाओं के साथ जुड़कर समाज सेवा को श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल ने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। समाज के गरीबों की सेवा ही उनका लक्ष्य है। जिसे वे सफलता पूर्वक पूरा कर रही है। समाज और पर्यावरण के हित और मेडिकल छात्रों की भलाई के लिये दधीचि बन कर अपनी देह का दान भी कर दिया। जो समाज में एक परम्परा को जन्म दे रहा है।

सेंट जोसेफ स्कूल्स के प्रबंधक निदेशक अनिल अग्रवाल बताते हैं कि आज सेंट जोसेफ का विशाल वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं के साथ शिक्षा की शीतल छांव प्रदान कर रहा है तो इसका श्रेय केवल श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल को है।

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